Saturday, February 6, 2010

बाल मजदूरी एक बहुत बड़ी वैश्व्यिक समस्या है,,(निल्ज़े सिल्विया )


बाल मजदूरी एक बहुत बड़ी वैश्व्यिक समस्या है,, विश्व समुदाय प्रतिबर्ष जून में बाल मजदूरी दिवश मनाता है ,,,सैकड़ो सामाजिक संस्थाए गैर सरकारी संस्थान और समूह बाल मजदूरी के खिलाफ लाम बद्ध होते है ,,, बड़ी बड़ी बाते और प्रण किये जाते है,, और काम भी किये जाते है मगर हमें वो सफलता नहीं मिल पा रही है जो मिलनी चाहिए ,,,,अनेक क़ानून बनते है और बाल मजदूरी रोकने के भिन्न भिन्न हाथ कंडे सरकार द्वारा अपनाए जाते है ,,,फिर भी हर साल अंतराष्ट्रीय मजदूर आर्गनाईजेसन की रिपोर्ट चौकाने वाली ही होती है,,, इस संस्था के अनुसार विश्व में लगभग 246 मिलियन मजदूर बच्चो की उम्र 15 से नीचे है सबसे महत्व पूर्ण बात तो ये है की हर दस में से एक बाल मजदूर बच्चा क्रषि में कार्यरत है .....( यानी की ग्रामीण भाग में इसकी पकड़ जयादा है ) जिसकी तरफ हामारी ज्यादा तर संस्थाओं का ध्यान ही नहीं जाता है,,,, ,,,,अगर स्थानीय शेयर के हिसाब से देखे तो इसमें एशिया पैसफिक 122 मिलियन के साथ प्रथम स्थान पर है ,,,,,,,,,,
भारत में भारतीय सरकार के आकड़ो के हिसाब से लगभग 12.६ मिलियन बच्चे है जो 14 साल से कम के है और विभिन्न जगह काम कर रहे है ,,,मगर गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सेवी संस्थाओं के आकडे बिलकुल अलग ही कहानी कहते है ,,,,जिनके अनुसार भारत में लगभग 70 मिलियन बच्चे स्कूल नहीं जाते ,,,, इस हिसाब से हम कह सकते है की सरकारी आकड़ो और गैर सरकारी आकड़ो में बहुतविरोधाभाष है ,,
और बाल मजदूरों की संख्या सरकारी आकड़ो में बतायी संख्या से बहुत ज्यादा है ,,,,,ये बच्चे मुख्यता क्रषि विभिन्न प्रकार के उद्धोग (सिल्क चूड़ी , कालीन आतिश बाजी , कपास ईट भठ्ठे ) और घरेलू कार्यो में कार्य रत है ,,,,,
इन बाल मजदूरों की दर्द भरी आवाज पूरे विश्व में सुनी जा सकती है भारत उसका अपवाद नहीं है ,,,,
" सोनू लगभग १० वर्ष का है वो सुवह से लेकर शाम तक बनारश के साडी कारखाने में,,, रेशम और उसमे प्रयुक्त होने बाले केमिकलो के साथ काम करता है ,, जो उम्र उसकी खेलने और स्कूल जाने की होनी चहिये उसमे वह खुद ही अपना अन्धकार मय भविष्य तैयार कर रहा है ,,,,
इतना ही नहीं पूरे भारत में प्रति वर्ष लगभग 420000 बच्चे इस उद्धोग में धकेले जाते है ,,,,
ये तो एक बानगी मात्र है ,, आज कल की ब्रद्धि रत कढाई उद्धोग गारमेंट उद्धोग ,,कालीन उद्धोग कपास उद्धोग और ना जाने कितने और उद्दोग प्रति दिन लाखो बच्चो से उनका बचपन छीन रहे है,,,,हजारो लड़के अब भी हर जगह होटलों चाय की दुकानों ढाबो और घरो में काम करने को मजबूर है जिनकी उम्र १४ साल से कम है ,,, जबकि सरकार ने १४ साल से कम के बच्चो के काम पे रोक लगा रखी है,,,,
मगर गरीब और अनपढ़ माँ बाप की कमजोर आर्थिक स्थिति और हमारी लालची परवर्ती ने इन बच्चो को इस नरक में पड़ने को मजबूर कर रखा है ,,,,,
तो आबश्यकता है आम जाग्रति की तो आओ हम सब मिल कर प्रण करे की बाल मजदूर नहीं रखेगे और जो लोग बाल मजदूर रखते है उन्हें इस के लिए मना करेगे और असहाय और गरीबो की मदद कर उन्हें और उनके बच्चो को इस गर्त में जाने से बचाए गे
एक कवि की चंद लायनो के साथ
समाज के तंग गलियारों में
एक प्रतिमा बन खडी हूं
खुली हवा में सांस लेने के लिए
दोस्त बनाने के लिए
कहीं भी,
कभी भी दायित्व उतार फेंकने के लिए
लेकिन मैं फिर भी
कोशिश करके जोडती हूं
स्वयं को घर से
बाहर लगी अपनी छोटी सी फुलवारी से

Friday, February 5, 2010

मेरा नाम निल्ज़े सिल्विया है

मेरा नाम निल्ज़े सिल्विया है ,मै ब्राज़ील से हूँ. भारत में मै बच्चो के स्वास्थं और पोषण को लेकर काम कर रहे एक स्वम सेवी संघ से जुडी हूँ,,, भारत में मुझे लगभग १० साल हो गए है,, इतने लम्बे समय में मै भारत को अच्छी तरह से समझने लगी हूँ या सच कहूँ तो मै खुद भारतीय हो गयी हूँ ,, भारतीय खाना भारतीय पहनावा (केवल वो जो निजता न हरता हो ) और भारतीय लोग बहुत पसंद है ,,, हिंदी मैंने यहाँ आने से पहले ही सीखनी शुरू कर दी थी ,, अब मै गर्व से कह सकती हूँ की मै अब अच्छी हिंदी भाषी हूँ ( कुछ उचारण सम्बन्धी और मात्राओं की गलतियों को छोड़ कर जो मुझे लगता है आप लोगो के संपर्क में आने से दूर हो जाए गी ) हिंदी में ब्लॉग लिखने के लिए मेरे एक मित्र ने बहुत मदद की जिनके प्रयाश से ही आज मै हिंदी ब्लोगिंग में कदम रख रही हूँ आप के सहयोग की आवश्यकता है ,,,,,